आसाम भारत का ही राज्य है न?
Baikunth
Bihari Baithe Ji (BQ), बिहारी का चौपाल !!
कॉलेज का तो मुँह हम दूर से भी नहीं देखे हैं, स्कूल के नाम पर
चरवाहा वीद्यालय जाते थे उ भि थैंक्स टू लालू जि. हुआं भी बस सरकारी स्कूलवा के
मैदान में अपनी भैशिया को चराने के लिए जाते थें. उ का हैना कि हमरि भैशिया को भि
लालु जि कि तरह चारा बहुत पसन्द है. खैर चरवाहा विद्ध्यालय के चक्कर मे साला भैशिया
तो ग्रेजुएट हो गयी, मगर हम पाचवी में पाच बार लटक गए. बाबु बोलिन पढ के भि तो
भैशिया चराना है, छोड दे बेटा पढाइ. हम भि बाबुजि कि बात मान के पढ़ाइ देवता
से छुट्कारा ले लिये.
इतना तो हमको ही नहीं हुमरे पुरे स्कुल को तब्बे पता चल गया था
की हम पढाई के लिए नहीं बल्कि बकैती के लिए बने हैं. उ का है ना i was too kool FOR skul .... खैर हमारी बात छोडिये और हमको जरा अपने मे से न 100 ग्राम जनरल नॉलेजवा उधार दे दीजिये.
बताइए की आसाम जो है उ भारत का ही राज्य है? उ का है की हम हांल
में जो कुछ भि हुआ हैना उसको लेके हम न बहुत्ते कंफुज हो गए हैं, समझे में नहीं आ रहा है की किससे पुछे और क्या सच माने. हमरे नेता लोग के भाषण को सुन के और जो कुछ
भी आसाम में हो रहा है उसको देख के तो हमको इ तनिको नहीं लगता है की आसाम भारत में कहियो
था भि. मरदे धु धु करके जल रह है इत्ना बगल मे अउर लग्ता है कि हम लोगो के कउनो
फरके नहि पड रहा है.
अच्छा, हो सकता है सब आन्ना भा रामदेव के रामलिला देखे गया होगा, या फिर ससद में ही कोई ड्रामा हो रहा होगा सब उहे देखे खुबे बिजि होगा. ठिक है बेटा, देखते है केतना दिन इग्नोर मारते हो सभ्भे लोग. अरे कहि सब राश्त्रपति चुनाव त नहि ना देख रहा है? उ का है कि अबकि
के राश्त्रपति चुनाव भि इन्डिया पाकिस्तान टाइप हुआ है ना.
खैर, एगो बात सुनो बबुआ
काश्मिर चाहिये ना? ... हान बेटा उ त सबको चाहिए, काश्मिर ना हुआ गिर्ल्फ़्रेन्ड हो गया.
कश्मीर हर कीमत पर चाहिए, मगर जो पहिले से है उसको नहि संभालोगे ससुर के नाती. बड़ा
खुश हुआ होगा कश्मीर का भाइ लोग इ सब जानकर की आसाम में हालत भारत सर्कार के काबू से बहार
है. अरे अपना दांत का तो गिनतीये नहीं है चले हैं दुसरे का खोड्हिला काबारे.
कश्मीर के लोग तो वैसे ही भडकल रहते हैं कही आसामो से हाँथ धोना पड जाएगा न त कहि
मुह दखावे लायक नहि रहोगे, सुरदास लोग. अभी जो पूरा महौल बनल है, लगता है की पजामा
तो गिरिये गया है बस नाडा ही खुलना बाकि है. समूचा विश्व के सामने नाक कट जाएगा
बेटा, अगर जो अबकी भारत से अलग हटके कोई हिस्सा स्वतंत्र देश बन
जाता है त.
हमरे जैसन गंवार को भी इस बात से इतना लज्जा हो रहि है की
हमे तो लगता है की हमने ही अपने आसामि भाइ लोगो को धोखा दिया हो. ऐसा रोज हमरा खून
मुफ्त में बिना किरासन आ डीजल के नहि लहकता है, सरकार. अरे हम तो सारा उम्र थाली के बैगन
रहे हैं, आज तक नक्शा पर भी आसाम नहीं देखे हैं. अपन छोट गाँव से
एक्के दु बार बहार निकले हैं, उ भी कहाँ गए थे याद नहीं है. लेकिन इतना
तो हम भि कान्फ़िदेन्ट है की उ दिल्ली वाला बाबु लोग से कहीं जादा अपने देश के हर
हाल और मिजाज़ का लेखा जोखा रह्ता हैं हमरा पास. अख़बार भले ही उल्टा पढ़ते हैं बाकि
बनवाटी और बिकी हुई ख़बरों में से सच छानना खूब आता है हमको. आसाम के बारे में गाँव
के सरपंच भि कह रहे थे की बहरी लोग बंगलादेश अउर काहा काहा से आके और हमारे हि
बोडो भाई लोगो को तंग कर के उनका जीना हराम किये हुए है सब.
इ का हो रहा है बे? साला वासेपुर में मनोज भाई जो बोले थे की
केह के लूँगा, उसको इ बंगाल्देशिया सब चरितार्थ कर दिहिस है. मगर इ हुआ
कैसे इ तो कोई ससुर के नाती नहि जाना. कोइ साला अपने ही घर में घुश के अपने ही ऊपर
जुल्म करता है और अपने ही लोगों को पता नहीं चलता है. साला घोडा बेच के सोये हो की
पूरा देश ही बंगलादेश को बेच दिए हो. एक बात बता दे क्रन्तिकारी भाषण देने तो हमको
नहीं आता है पर इतना जरुर जानते हैं कि अम्रीका भी लगातार बाहरी घुसपैठ से लड़ता
रहता है, मेक्सिको और कनाडा से कई लोग वहां हर साल घुसने का कोशिश
करते हैं बाकि आज तक ऐसन नहीं सुना की अम्रीका के लोगों को मेक्सिको वाला सब
टेक्सास या कलिफ़ोर्निया से खदेड़ दिहिस है.
इ तो स्वाभाविक है कि जब भी किसी एक जगह से बेहतर स्थितियां
किसि और जगह नज़र आति हैं तो लोगों वहां के लिए पलायन करना चाह्ते है, इ तो मानव के खून
में ही है, 'ऎडेपटॆन्शन', परन्तु अपने देश के नागरिकों के हक़ की
हिफाजत भी तो सरकार व नेताओं का कर्तव्य है. आसाम में हिंसा हुई तो प्रधान मंत्री वाहा के
मुखय मत्री को दोषी ठहराने में व्यस्त हो गये, एक बार दौरा भि कर लिया, मुख्य मंत्री सेना
पर सारा ठीकरा फोड़ देते हैं, कि इ सेने वाला देरि से आया. अबे राज चला
रहे हो की आलू बेंच रहे हो? देरी से आया, त सब आलू सड गया. यहा नागरिको के जान पर
बनल है, अउर नेता लो आलु प्याज कर रहा है, धत्त. अउर वइसे भि, ऐसन स्थिति कोई
रातो रात तो सामने आता नहि है बे. बेट्टा सब चोचला है, आज़ादी के बाद से
ही सुरु हो गया था इ लफ़्डा. स्थानीय बोडो लोग और बंगलादेशी दामाद लोग कई साल से
लड़ते आ रहे है, साला सब जानता है. बस प्रधान और मुख्य मंत्री को ही नहीं
सुंघाई देता है इ सब.
अरे जब देश में लोग 32 रुपया में आमिर कहलाते हैं और अख्बार मे
सब मार झूठ संच लिखा जाता है प्रेस को पैसा देके खरीद लिया जाता है भ्रस्टाचारियो
को ताकत दे दि जाति है, नफ़रत कि आंधी में लोग आपन आत्मा तक को बेंच दिया करते हैं, वहा अउर क्या
होगा. इ सब रोज होता है और तुमको पता भी नहीं चलता. चलो इ माना जा सकता है की बंगलादेश
में स्थिति रहने लायक नहीं हैं, तो भारत सरकार के नाते बंगलादेश को भीख
काहे नहीं दे देते, की लो हइ चार रुपया एगो मस्त धोती, एगो झकाश रेडियो
अउर एक साईकिल खरीद के अपने हि हियाँ ही मरो सलों, हमारे यहाँ अपने ही बहुत तकलीफ है भाई.
सब बंगलादेशि सब को मेहमान बाना के रखोगे, तो सनकिये ना
जयेगा सब. भारत के टीबी चैनल देखके, सिनेमा देख के सोंचता होगा की इण्डिया तो
मस्त जगह है रहने के लिए चलो कौनो भ्रष्ट प्रहरि को दू रुपया देके चलते है
ससुरारी. अउर का यहि सोन्च के त साला दामाद बनके चल आता है सब और सबसे बड़ी बात की
साला किसी को पता भी नहीं चलता है. इ मंगनी का मेहमान सब कइसे आता है कहा ग़ायब
होता है कोइ नाहि जानता.
चलिये ब्रिटिश ज़माने से स्टार्ट करते हैं इ त्राश्दी का
पहला बीज वहि बोया गया था. आसाम के आबादी तब एतनी नहीं था परन्तु
अंग्रेजवन को यहाँ की खेती योग्य उपजाऊ जमीन के बारे में पता चल गया. अँगरेज़ सब
साला बहुत तेज था सब केचुआ जैसा किसी भी चीज़ से खून चूस लेता था. सो बंगलादेशी सब
को खेती करने के लिए आसाम ले आया और तभी से बंगाली मुस्लिम की एक बिरादरी यही बसी
हुई है. आज़ादी के बाद जो चाहा जहाँ सटक लिया. लेकिन जो रुकगया उ फ़्रि फ़न्ड मे
भारतिय हो गया. कहावत हैं न, हिंग लगा न फिटीर्किरी रंग सोलह टका. चलो
इ बात हम मान भी जाते है की जो हियाँ रह गए वो यहाँ के भारतियों से कम नहीं था. उ
सब को भी इस देश का ही नागरिकता मिलना उतना ही लाज़मी था जितना असल भारतियों को.
बाकि वक़्त के साथ इन एहशान फरामुस भारतीय-बांग्लादेशियों ने अउर घुसपैठियों सब को
सरन देना सुरु कर दिया ताकि जो स्थानीय जनजातियाँ हैं खास गर बोडो भाई लोग उनके
ऊपर वर्चस्व की लड़ाई लडि जा सके.
साला इ बहुत अजूबा बात है की है की तब से आज तक इतना बदलाव
आया है की आज गोड्डा माइनोरोटी है और बंगलादेशीयों की संख्या कहीं अधिक हो गयि है.
बोडो ने अपनी रक्छा के लिए कई संगठन बनाये पर उन्हें आतंकी संगठन समझा जाने लगा, जो की कुछ हद तक
सही भी था, अब दिन दहाडॆ तमान्चा लह्राइयेगा त समाज सेवक त नहि ना
कहाइयेगा. खैर कई बार दोनो गुटों में झड़प हुई, हजारों लाशें गिरि जो अब तक अपने मक्शुद
को खोजती हैं, लाखों बेघर हुए और जानवरों की तरह किसी पनाहगार में जिंदगी
बसर कर रहे हैं. बुजुर्ग महिलाये और बाच्चे ये सोंच कर अपना दिन बिता रहे हैं की
उनका ऎसा क्या कसूर था की उन्हें अपनी ही जमीन अपनी ही मात्रभूमि से अलग रहना पड
रहा है. ulfa, bpf or aasu जैसे संगठनों के माध्यम से स्थानीय आबादी की आवाज़ उठाई तो
जाती रहि है, पर कभी कभी ये आवाज़ बम के धमाकों और गोलियों की चिंघाड़ का
रूप ले लेती है. कितने बेसहारा जिवन लील लिए जाते हैं, बेगुनाह फिर वहीँ
दुराहे पर खड़े होते है, मन मे वही सवाल लिए कि, हम का किये थे बे.
आप जो यह पढ़ रहे हैं कीसि नेता या किसी बाबु के विशेष
अधिकार का हनन कर के देखिये आपको छठ्ठि का दूध न याद दिला दिया सब त हम बैकुंठ
बिहारी नहीं. और उ जो आसामी भाई लोग के नागरिक अधिकारों का हनन
पिछले कई सालों से हो रहा है उसके लिए कौन आवाज़ उठाएगा बेघ. नागरिक अधिकार छोरिये
महाराज उनके मानव अधिकारों का भी कोई बाट जोहने वाला नहीं है. अगर लिक से भटक कर
युवा अपने जमीन और अपने पहचान की लड़ाई के लिए हथियार उठाएगा तो उसका जिम्मेवार कौन
होगा बे घन्चक्कर.
अभी कुछ दिन पहले ही चार बच्चों ने हथियार डाले थे और मुख्य
धारा में जुड़ने का प्रण लिया था, लेकिन क्या हुआ उनके साथ? निहत्था देख के
उथा ले गया सब अउर सब को मार दिया साला सब. उनकी लाश भी नहीं मिली. कोकराझार की
घटना के बाद भि कई महिलाएं और बच्चे जानवरों की तरह एक छोटे से रेफूजी कैंप में रह
रहे हैं. आप तो माहाराज वहां नहीं हो, तो फ़ेस्बुक और ट्विटर के माध्यम से ये मत
कहना की मैं उनका दर्द समझ सकता हूँ. काहेकि इ संच है कि कितनो नाक रगड़ लो बेटा, उनके दर्द का
दसवां हिस्सा भी नहीं बर्दास्त कर सकते. दर्द तो इतना है उन्मे की मेरे जैस अनपढ़
से शायद बयान न हो पाए, पर सवाल यह भी है की क्या हमारे नेताओं में यह इचछाश्कती है
की वे इसे अपनी गलती मान कर दुबारा कभी न होने देने का वदा, उन माताओ को करे
जिनके लाल नहि रहे, उन विध्वाऒ को करे जिन्के सुहाग उजड गये अउर उन बच्चो को
जिन्के उपर लावारिश का ठप्पा लग गया.
i condemn
this incident, i condemn that attack, i condemn this statement...साला अंग्रेजी न हुआ माफीनामा का सर्टिफिकेट हो
आतंकी वारदात से लेके भूकंप तक को बस कांडॆमं ही करते हैं हमारे पूज्य नेतागणण्.
बहुत पहले टीबी पर एक सीरियल आता था उसमे इन्द्र देवता हर राक्षशि आतंक और उपद्रव
के बाद त्राहिमाम त्राहिमाम करते भगवन विष्णु अथवा शंकर के पास पहुच जाते थे. तब
कही भगवानो कही इ कह के सो जाते की आई कंडेम फलनवा, त इन्द्र के साथ साथ तिनो लोक का
एंटी.सेकुलरिस्म हो जाता. और यदि भगत सिंह या महात्मा गाँधी खुद अंग्रेजों के
खिलाफ लड़ने के वजह बस आइ कांडॆमं दिस कह के रह जाते तो ये नेता लोग आज चौराहों पर
मूंगफली बेच नहीं रहे होते?
सबसे बुरा तब लगाता है जब इ महानुभाव लोग राष्ट्रपति चुनाव
में मस्घुल था वहां लोगमारे जा रहे थे, और महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा था.
साला मेरे जाईसा लोग के स्मझ के बाहर हाई कि ऐसा लोकतंत्र किस काम का है, जिसमे एक राज्य जल
रहा हो और बाकि राज्यों को खबर भी नहीं होती. इ घटना के विरोध में जब मुंबई में
आज़ाद मैदान में आगजनी हुई, पोलिस के साथ साथ मिडिया वला भाई लोग को बढियां से कुट्टा
गया तब झट से लोगों को नज़र आगया. काहे बे व्क्त्परश्त लोग किसी भी मार्मिक से
मार्मिक घटना पे आप लोगो का ध्यान खीचने के लिए उसे मुंबई या डेल्ही में आउट्सोर्श
करना पड़ेगा का? अउर यदि हाँ तो क्या ये हमारे चरमराते लोकतंत्र के लिए एक
बड़ा धब्बा नहीं है?
जब संसद में इस मामले पर चर्चा की बात हुई तो हो हल्ला करके
सदन को ही स्थगित करा दिहीस सब. वैसे इ नेता लोग बहुत चालू चिज होता है दिखाव्वाद
से पूरा प्रेरित होकर वही मुद्दा उठाता है जिसमे नेशनल अपील हो. आपनि अम्मा को भि कोइ मार रहा हो तो बिना
प्रेस की मौजूदगी के ना बचावे. आसाम तो हमेशा जलता रहता है उसे क्या देखना. हलाकि
मिडिया को इस बात की बधाई देनी चाहिए की इ सब भाई लोग इस बार के आसाम के मुद्दे को सही सही दिखाया है सब.
हलाकि नैतिकता के कसौटी पर इ हर आदमी का फ़र्ज़ है की उ अपने गिरेबान में झांके और इ
सोंचे कि उसको उसके घर से बे-इज्जत करके निकाला जायेगा तो उस्को कैसा लगेगा. का
करोगे सोंचिहो बेटा? हम आते हैं जरा बुधन की बकरी को कन्डेम करके, उ का है की 2 दिन से दूधे नहीं दे रही है शशुरि.
हहहहः.......